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सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Forms of social inequality and exclusion class 12 sociology Book 1 Chapter 3 Notes



विषमता


  • विषमता संसाधनों, अवसरों, और प्राधिकारों की असमान वितरण को दर्शाती है, जो अक्सर जाति, लिंग, आर्थिक स्थिति, और नस्ल जैसे कारकों पर आधारित होती है।



सामाजिक विषमता


  • सामाजिक असमानता एक समाज के भीतर व्यक्तियों और समूहों के बीच संसाधनों, अवसरों और विशेषाधिकारों का असमान वितरण है, जो अक्सर नस्ल, लिंग, सामाजिक आर्थिक स्थिति और जातीयता जैसे कारकों पर आधारित होता है, जिससे परिणामों और अवसरों में असमानताएं होती हैं।
  • प्रत्येक समाज में कुछ लोगों के पास धन, संपदा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शक्ति जैसे मूल्यवान संसाधन का दूसरों की अपेक्षा ज़्यादा बड़ा हिस्सा होता है।
  • सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति ही साधारणतया सामाजिक विषमता कहलाती है।
  • कुछ सामाजिक विषमताएँ व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक भिन्नता को प्रतिबिंबित करती हैं
  • उनकी योग्यता एवं प्रयास में भिन्नता।


सामाजिक संसाधन पूंजी के रूप

 

1. आर्थिक पूँजी

  • भौतिक संपत्ति 
  • आय


2. सांस्कृतिक पूँजी

  • प्रतिष्ठा 
  • शैक्षणिक योग्यता


3. सामाजिक पूँजी

  • सामाजिक संगती 
  • सम्पर्क जाल


पूँजी के ये तीनों रूप अक्सर आपस में घुले-मिले होते हैं तथा एक को दूसरे में बदला जा सकता है।


सामाजिक विषमता के कारण 

  • सामाजिक विषमता व्यक्तियों के बीच सहज या 'प्राकृतिकः भिन्नता की वजह से नहीं है, बल्कि यह उस समाज द्वारा उत्पन्न की जाती है जिसमें वे रहते हैं।
  • वह व्यवस्था जो एक समाज में लोगों का वर्गीकरण करते हुए एक अधिक्रमित संरचना में उन्हें श्रेणीबद्ध करती है
  • इस व्यवस्था को सामाजिक स्तरीकरण कहा जाता है  
  • लोगों की पहचान एवं अनुभव, उनके दूसरों से संबंध तथा साथ ही संसाधनों एवं अवसरों तक उनकी पहुँच को आकार देता है।



सामाजिक स्तरीकरण


1. समाज की एक विशिष्टता है।

  • समाज में व्यापक रूप से पाई जाने वाली व्यवस्था है जो सामाजिक संसाधनों को, लोगों की विभिन्न श्रेणियों में, असमान रूप से बाँटती है। 
  • अधिक आदिम समाजों में बहुत थोड़ा उत्पादन होता था अतः केवल प्रारंभिक सामाजिक स्तरीकरण ही मौजूद था। 
  • उन्नत समाज में जहाँ लोग अपनी मूलभूत जरूरतों से अधिक उत्पादन करते हैं, सामाजिक संसाधन विभिन्न सामाजिक श्रेणियों में असमान रूप से बंटा होता है


2. पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।

  • यह सामाजिक संसाधनों के एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में उत्तराधिकार के रूप में घनिष्ठता से जुड़ा है। 
  • एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति अपने आप मिली हुई होती है। अर्थात् बच्चे अपने माता-पिता की सामाजिक स्थिति को पाते हैं। 
  • जाति व्यवस्था के अंदर, जन्म ही व्यावसायिक अवसरों को निर्धारित करता है।


3. विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है। 

  •  सामाजिक स्तरीकरण की कोई भी व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी नहीं चल सकती जब तक कि व्यापक तौर पर यह माना न जाता हो कि वह या तो न्यायसंगत या अपरिहार्य है।

उदहारण-    

  • जाति व्यवस्था को धार्मिक या कर्मकांडीय दृष्टिकोणसे शुद्धता एवं अशुद्धता के आधार पर न्यायोचित ठहराया जाता है



सामाजिक विषमता सामाजिक क्यों है ?

 

तीन प्रमुख उत्तर हो सकते हैं 

1. वे व्यक्ति से नहीं बल्कि समूह से संबद्ध है।

2. ये आर्थिक नहीं हैं

3. ये व्यवस्थित एवं संरचनात्मक हैं



क्या भेदभाव सिर्फ आर्थिक रूप से ही होता है ?


  • यह आंशिक रूप से ही सत्य है। 
  • लोग ज्यादातर अपने लिंग, धर्म, नृजातीयता, भाषा, जाति तथा विकलांगता की वजह से भेवभाव का सामना करते हैं।



पूर्वाग्रह 


  • हम सब एक समुदाय के सदस्य के रूप में बड़े होते हैं जिससे हम अपने 'समुदाय', 'जाति', 'वर्ग' या 'लिंग' के बारे में तथा दूसरों के बारे में भी धारणाएँ बनाते हैं। 
  • यह धारणाएँ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होती हैं।
  • पूर्वाग्रह एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में विचार या व्यवहार होता है।
  • व्यक्ति के विचार सबूत-साक्ष्यों के विपरीत सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होते हैं। 
  • यह नई जानकारी प्राप्त होने के बावजूद बदलने से इंकार करते हैं।



रूढ़िबद्ध धारणा


  • रूढ़िबद्ध धारणा पूरे समूह को एक समान श्रेणी में स्थापित कर देती है
  • कुछ समुदायों को 'वीर प्रजाति' की संज्ञा वी गई तो कुछ को कायर या पौरुषहीन और कुछ को दगाबाज़ कहा गया।
  • किसी पूरे के पूरे समुदाय को 'आलसी' या 'चालाक' कहा जाता है।
  • इसके अनुसार पूरे समुदाय को एकल व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, मानो उसमें एक ही विशेषता या लक्षण हो।
  • भेदभाव को व्यावहारिक रूप में इस प्रकार भी देखा जा सकता है जिसके तहत एक समूह के सदस्य उन अवसरों के लिए अयोग्य करार दिए जाते हैं जो दूसरे के लिए खुले होते हैं

उदहारण- 

  • एक व्यक्ति को उसके लिंग अथवा धर्म के आधार पर नौकरी देने से मना कर दिया जाता है।



सामाजिक बहिष्कार


  • वह तौर-तरीके जिनके व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने-मिलने से रोका जाता है ।
  • यह उन सभी कारकों पर ध्यान दिलाता है जो व्यक्ति या समूह को उन अवसरों से वंचित करते हैं जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं।


1. क्रियाशील जीवन जीने के लिए

  • मूलभूत आवश्यकता रोटी, कपड़ा तथा मकान


2. आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं

शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात के साधन, बीमा, सामाजिक सुरक्षा, बैंक, पुलिस एवं न्यायपालिका 



जाति 


1. प्राचीन संस्था 

  • हजारों वर्षों से भारतीय इतिहास एवं संस्कृति का एक हिस्सा है 
  • जाति केवल हमारे अतीत का नहीं नहीं आज का भी एक अभिन्न अंग है 


2. हिन्दू समाज की एक संस्थात्मक विशेषता 

  • इसका प्रचलन अन्य धार्मिक समुदायों में भी रहा है और आज भी है 

1. मुसलमान

2. ईसाई 

3. सिखों 

4. बौद्ध 

5. जैन 



भारत में जातिगत व्यवस्था


  • उत्तर वैदिक काल में यह व्यवस्था प्रचलन में आई 
  • जाति जन्म से ही निर्धारित होती है ,पिता की जाति में ही जन्म होता है 
  • यह चुनाव का विषय नहीं होती है एक जाती में जन्म लेने वाला व्यक्ति उस जाति से जुड़े व्यवसाय को ही अपना सकता था 
  • जाति में खाने और खाना बांटने के बारे में भी नियम शामिल होते है 
  • इस व्यवस्था में एक अधिक्रमित स्थिति देखने को मिलती है 
  • यह एक खंडात्मक संगठन के रूप में कार्य करती है 
  • एक जाती में जन्म लेने वाला व्यक्ति उस जाति से जुड़े व्यवसाय को ही अपना सकता था 
  • जाति एक बहुत असमान संस्था थी 
  • जहां कुछ जातियों को तो इस व्यवस्था से लाभ मिल रहा था अन्य को इसकी वजह से आधीनता वाला जीवन व्यतीत करना पड़ता था 
  • जाति जन्म द्वारा कठोरता से निर्धारित हो गई उसके बाद किसी व्यक्ति के जीवन स्थिति बदल पाना असंभव था चाहे उच्च जाति के लोग उच्च स्तर के लायक हो या न हो 


अस्पृश्यता

 

  • जाति व्यवस्था का अत्यंत घृणित एवं दूषित पहलू वे समूह जिनको इस जातिगत अधिक्रम मे शामिल नहीं किया गया जिनके साथ बहुत अन्याय किया गया था  

वर्ण व्यवस्था 

1. ब्राहमण 

2. क्षत्रिय 

3. वैश्य 

4. शूद्र  

  • कुछ लोगों को इस व्यवस्था से बाहर रखा गया था इन्ही को बहिष्कृत या अछूत कहा जाता था 



जाति व्यवस्था का आधार


  • कर्मकांडीय दृष्टि के आधार पर 

1. पवित्र -  उच्च जाति 

2. अपवित्र - अछूत 

  • अपवित्र मानी जाने वाली जातियों के जरा छू जाने से ही अन्य सभी जातियों के सदस्य अत्यंत अशुद्ध हो जाते हैं, 
  • जिसके कारण अछूत कहे जाने वाले व्यक्ति को तो अत्यधिक कठोर दंड भुगतना पड़ता है, 
  • उच्च जाति का जो व्यक्ति छुआ गया है उसे भी फिर से शुद्ध होने के लिए कई शुद्धीकरण क्रियाएँ करनी होती हैं।



अस्पृश्यता के आयाम


  • अस्पृश्यता में बहिष्कार , अधीनता, शोषण देखा जाता है 
  • इन लोगों के साथ बहुत ज्यादा भेदभाव होता था 
  • उन्हें पेयजल के सामान्य स्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता, उनके कुएँ, हैंडपंप, घाट आदि अलग होते हैं
  • सामूहिक धार्मिक पूजा, समारोहों और त्योहारों-उत्सवों में भाग नहीं ले सकते
  • आर्थिक शोषण तो मानो इस अस्पृश्यता की कुरीति के साथ सदा से ही जुड़ा है। 
  • उन्हें आमतौर पर 'बेगार' करनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाता या बहुत कम मजदूरी दी जाती है। 
  • कभी-कभी तो उनकी संपत्ति छीन ली जाती है।



 दलित

 

  • 'पैरों से कुचला हुआ
  • उत्पीड़ित लोगों का द्योतक 
  • यह शब्द न तो डॉक्टर अंबेडकर द्वारा गढ़ा गया था 
  • न ही अक्सर उनके द्वारा इसका प्रयोग किया गया था
  • पर इसमें उनका चिंतन तथा दर्शन एवं उनके उस आंदोलन का मूल भाव निश्चित रूप से दिखाई देता है 
  • जो उनके नेतृत्व में दलितों को सशक्त बनाने के लिए चलाया गया था।



भेदभाव को खत्म करने में राज्य की भूमिका

 

राज्य की भूमिका

1. अनुच्छेद 15 में भेदभाव का अंत 

2. अनुच्छेद 16 के तहत आरक्षण 

3. अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का उन्मूलन 

4. 1850 का जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम

5. 1989 का अनसुचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम


  • अनुच्छेद 15 - समानता का साधन: यह अनुच्छेद संविधान में समानता के सिद्धांत को विवरणित करता है, जो सभी नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में समान अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार देता है, अपने जन्म, जाति, धर्म, लिंग, या व्यवसाय के कारण किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ।
  • अनुच्छेद 17 - अधिकार के संरक्षण: इस अनुच्छेद में उच्चतम अदालत के द्वारा संविधान में वर्णित अधिकारों के संरक्षण की गारंटी दी गई है, जिसमें जाति और जनजातियों के अधिकार भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 46 - प्रारंभिक शिक्षा: इस अनुच्छेद के अंतर्गत, राज्य सरकारें निःशुल्क और अनिवार्य रूप से प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेती हैं, जिससे जाति और जनजातियों के लोगों को समान शिक्षा के अधिकार मिलें।




अन्य पिछड़ा वर्ग  (उत्पीड़ित लोगों का द्योतक )


  • अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के अलावा और भी कई समूह हो सकते हैं जो सामाजिक असुविधाओं से पीड़ित हैं। 
  • जातियों का एक बड़ा समूह ऐसा भी था जिन्हें नीचा समझा जाता था। 
  • उनके साथ तरह-तरह का भेदभाव भी बरता जाता था पर उन्हें अछूत नहीं माना जाता था। 
  • ये सेवा करने वाली शिल्पी (कारीगर) जातियों के लोग थे जिन्हें जाति-सोपान में नीचा स्थान प्राप्त था।
  • वे न तो जाति-क्रम में 'अगड़ी कही जाने वाली ऊँची जातियों के हिस्से हैं और न ही वे निम्नतम सोपान पर स्थित दलितों में आते हैं।
  • इन समूहों को 'सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग' कहा गया है।
  • जवाहरलाल नेहरू के समय में अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के उपाय सुझाने के लिए एक आयोग स्थापित किया था।
  • दक्षिणी राज्यों में पिछड़ी जातियों के राजनीतिक आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है। 
  • इन शक्तिशाली सामाजिक आंदोलनों के कारण अन्य पिछड़े वर्गों की समस्याओं पर ध्यान देने की नीतियाँ उत्तरी राज्यों में अपनाई जाने लगी थीं।
  • 1990 में केंद्रीय सरकार ने मंडल आयोग की दस वर्ष पुरानी रिपोर्ट को कार्यान्वित करने का निर्णय लिया तभी अन्य पिछड़े वर्ग का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख विषय बन गया।



आदिवासी संघर्ष


  • अनुसूचित जनजातियों को भी भारतीय संविधान द्वारा विशेष रूप से निर्धनता, शक्तिहीनता तथा सामाजिक लांछन से पीड़ित समाजिक समूह के रूप में पहचाना गया है।
  • जनजातीय समूहों का हिंदू समाज और संस्कृति से लंबा और निकट का नाता रहा है, जिससे 'जनजाति' और 'जाति' के बीच की परिसीमाएँ काफ़ी जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं।


आदिवासी

  • जंगलो में रहते थे इसलिए इन्हे वनवासी कहा जाता था 
  • जिन इलाकों में जनजातीय लोगों की आबादी घनी है, वहाँ आमतौर पर उनकी आर्थिक और सामाजिक हालत, गैर-जनजातीय लोगों की अपेक्षा, कहीं बदतर है।
  • गरीबी और शोषण की जिन परिस्थितियों में आदिवासी अपना गुजर-बसर करने के लिए मजबूर हैं


ऐसा  क्यों है  ????

बहुत सारे ऐतिहासिक कारण रहे है... 

  • जिन इलाकों में ये लोग रहते है/थे वह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न क्षेत्र था इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इन लोगों को जंगलों से निकालना शुरू कर दिया और जंगलों पर कब्जा करना शुरू कर दिया 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारत सरकार ने भी जंगलों एवं आदिवासी लोगों का शोषण जारी रखा 
  • सरकार ने अधिकांश वन-प्रदेश अपने उपयोग के लिए आरक्षित कर लिए और आदिवासियों को वहाँ की उपज इकट्ठी करने और झूम खेती के लिए उनका उपयोग करने के अधिकारों से वंचित कर दिया।
  • जब आदिवासियों से वनों की उपज और खेती के लिए जमीन छिन गई तब वे या तो वनों का अवैध रूप से इस्तेमाल करने को मजबूर हो गए (जिसके लिए उन्हें 'घुसपैठिए' और चोर-उचक्के कहकर तंग और दंडित किया जाने लगा) या फिर दिहाड़ी मजदूरी की तलाश में वन छोड़कर अन्यत्र चले गए।



सरकार वन का क्या करती है ??

1. खनिज संसाधन

2. विद्युत उत्पादन

3. खनन 

4. बाँध परियोजना



आदिवासी (मूल निवासी)


  • आदिवासी' शब्द भी राजनीतिक जागरूकता और अधिकारों की लड़ाई का सूचक बन गया हैं
  • औपनिवेशिक सरकार द्वारा की जा रही घुसपैठ के विरुद्ध संघर्ष के अंतर्गत 1930 के दशक में गढ़ा गया था।
  • आदिवासी होने का मतलब विकास परियोजनाओं' के नाम पर वनों का छिन जाना
  • जनजातीय समूह बाहरी लोगों (जिन्हें 'डिक्कू’/ समूह बा) और सरकार के विरुद्ध संघर्ष करते रहते हैं। 
  • आदिवासी आंदोलनों की उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक है, झारखंड और छत्तीसगढ़ के लिए अलग राज्य का दर्जा प्राप्त करना।



स्त्रियों की समानता और अधिकारों के लिए संघर्ष


  • पुरुषों और स्त्रियों के बीच जैविक अंतरों के कारण लैंगिक असमानता को प्रकृति की देनमाँ लेते है।
  • पुरुषों और स्त्रियों के बीच असमानताएँ प्राकृतिक नहीं, बल्कि सामाजिक हैं।
  • सार्वजनिक पदों पर स्त्रियाँ इतनी कम संख्या में क्यों पाई जाती हैं?? 
  • अधिकांश समाजों में स्त्रियों को पारिवारिक संपत्ति का छोटा हिस्सा क्यों मिलता है ?



स्त्रियों की समानता के लिए संघर्ष 

 

संघर्ष 

  • बंगाल में  राज्य राम मोहन राय 
  • बाम्बे प्रेसिडेंसी में सुधारक महादेव गोविंद रानाडे
  • जातीय और लैंगिक अत्याचारों के विरुद्ध जोतिबा फुले 
  • इस्लाम में सामाजिक सुधारों के आंदोलन का नेतृत्व सैयद अहमद खान ।


स्त्रियों के अधिकारों की लड़ाई स्त्री सुधारकों द्वारा भी लड़ी गयी 

1. स्त्री-पुरुष तुलना' 1882 ताराबाई शिंदे

2. 'सुल्तानाज ड्रीम' 1905 बेगम रुकैया 



कराची अधिवेशन में स्त्रीयों के मूल अधिकार


घोषणा 

  • सभी नागरिक कानून के समक्ष एक समान
  • मताधिकार का प्रयोग
  • प्रतिनिधित्व करने और सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार
  • किसी भी नागरिक को उसकी पृष्ठभूमि के आधार पर   सार्वजनिक रोज़गार के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा।



अन्यथा सक्षम व्यक्तियों का संघर्ष


  • अन्यथा सक्षम  लोग केवल इसलिए 'अक्षम' नहीं होते कि वे शारीरिक या मानसिक रूप से 'बाधित' होते हैं, 
  • लेकिन इसलिए भी अक्षम होते हैं कि समाज कुछ इस रीति से बना है कि वह उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता। 
  • अन्यथा सक्षम व्यक्तियों के अधिकारों को अभी हाल ही में मान्यता मिली है।

  • भारत में निर्योग्य, बाधित, अक्षम, अपंग, 'अंधा' और 'बहरा' जैसे विशेषणों का प्रयोग लगभग एक ही भाव को दर्शाने के लिए किया जाता है। 
  • अक्सर किसी व्यक्ति का अपमान करने के लिए उस पर इन शब्दों की बौछार कर दी जाती है।
  • ऐसी सोच का मूल कारण उस सांस्कृतिक संकल्पना से है जो दोषपूर्ण शरीर को दुर्भाग्य का परिणाम मानती है।



निर्योग्यता/अक्षमता का क्या अर्थ समझ जाता है? 


  • निर्योग्यता/अक्षमता को एक जैविक कमज़ोरी माना जाता है।
  • जब अक्षम व्यक्ति के समक्ष समस्याएँ खड़ी होती हैं तो यह माना जाता है कि ये समस्याएँ उसकी कमज़ोरी के कारण ही उत्पन्न हुई हैं।
  • अक्षम व्यक्ति को हमेशा शिकार यानी पीड़ित व्यक्ति के रूप में देखा जाता है।
  • मूल भाव यह दर्शाता है कि निर्योग्य व्यक्तियों को सहायता की आवश्यकता है।



शब्दों के प्रयोग में परिवर्तन 


1. मंदबुद्धि  - 'मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त

2. लंगड़ा-लूला  - शारीरिक रूप से बाधित

3. अंधा - दृष्टि बाधित 

 


अक्षमता और गरीबी 


समस्याएं  

1. अक्षमता और शिक्षा

2. अक्षमता और रोजगार

3. स्वास्थ्य सेवाएं

4. सामाजिक असमानता


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